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आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी और होम्योपैथी दवाओं के फार्माकोविजिलेंस की केंद्रीय क्षेत्र योजना
आयुष मंत्रालय ने आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी और होम्योपैथी (एएसयू एंड एच) दवाओं के फार्माकोविजिलेंस को प्रोन्नत करने के लिए नई केंद्रीय क्षेत्र योजना शुरू की है। योजना का मुख्य उद्देश्य प्रतिकूल प्रभावों के दस्तावेजीकरण की संस्कृति विकसित करना है और आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी और होम्योपैथी दवाओं की सुरक्षा मानीटरिंग करना है और प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में प्रदर्शित होने वाले भ्रामक विज्ञापनों पर निगरानी रखना है।
नेशनल फार्माकोविजिलेंस सेंटर (एनपीवीसीसी), इंटरमीडियरी फार्माकोविजिलेंस सेंटर (आईपीवीसीसी ) और पेरिफेरल फार्माकोविजिलेंस सेंटर ( पीपीवीसीसी) के त्रि-स्तरीय नेटवर्क की स्थापना को सुकर बनाना योजना का उद्देश्य है। अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान, नई दिल्ली को राष्ट्रीय फार्माकोविजिलेंस केंद्र के रूप में नामित किया गया है। कार्यान्वयन के प्रारंभिक चरण में, आयुष के पांच राष्ट्रीय संस्थानों को मध्यवर्ती फार्माकोविजिलेंस केंद्रों के रूप में नामित किया गया है और नैदानिक सुविद्याओं वाली आयुष कीे बयालीस (42) संस्थाओं को पेरिफेरल फार्माकोविजिलेंस केंद्रों के रूप में नामित किया गया हैं। देश भर में ऐसे और केंद्र स्थापित करने और 2020 तक 100 पेरिफेरल फार्माकोविजिलेंस केंद्रों के लक्ष्य को प्राप्त करने का उद्देश्य रखा गया है। राष्ट्रीय दवा नियामक प्राधिकरण के रूप में केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन और देश में फार्माकोविजिलेंस के लिए डब्ल्यूएचओ का सहयोगी केंद्र होने के नाते भारतीय फार्माकोपिया आयोग के प्रतिनिधि इस पहल में संरक्षक और मार्गदर्शक के रूप में जुड़े हुए हैं।
फार्माकोविजिलेंस अकेले स्वतः रिपोर्टिंग से अधिक है और दवाओं का मूल्यांकन फार्माकोविजिलेंस से अधिक है। यह प्रतिकूल दवा प्रतिक्रियाओं (एडीआर), उनकी पहचान और रिपोर्टिंग से संबंधित शाखा है। एडीआर को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा एक ऐसी दवा की प्रतिक्रिया के रूप में परिभाषित किया गया है जो हानिकारक, अनभिप्रेत होती है, और उस खुराक में होती है जिसका उपयोग सामान्यतया प्रोफिलैक्सिस, रोग के निदान या उपचार के लिए या शारीरिक क्रिया के संशोधन के लिए किया जाता है। फार्माकोविजिलेंस को डब्ल्यूएचओ द्वारा एक विज्ञान के रूप में परिभाषित किया गया है, जो उन गतिविधियों से सम्बन्धित है जो प्रतिकूल प्रभावों के पता लगाने, निर्धारण, जानकारी और रोकथाम या किसी अन्य दवा सम्बन्धी समस्याओं से संबंधित है।
हर्बल दवाओं के सम्बन्ध में आम मिथक यह है कि ये दवाएं पूरी तरह से सुरक्षित हैं और इसलिए चिकित्सक के पर्चे के बिना रोगी द्वारा सुरक्षित रूप से इसका सेवन किया जा सकता है। इस विश्वास के कारण पूरी दुनिया में लोगों द्वारा बड़े पैमाने पर स्वतः औषधि का प्रयोग किया गया है, जो अक्सर निराशाजनक अंत-परिणामों, दुष्प्रभावों या अवांछित दुष्प्रभावों का कारण बनता है। इसलिए, आयुष चिकित्सकों और उपभोक्ताओं को अब जन स्वास्थ्य के हित में दवाओं की सुरक्षा निगरानी के प्रति सतर्क रहने की आवश्यकता है।
फार्माकोविजिलेंस पहल संभावित रूप से असुरक्षित एएसयूएंडएच दवाओं और भ्रामक विज्ञापनों का पता लगाने की सुविधा प्रदान करेगी ताकि उनके विरुध्द नियामक कार्रवाई की जा सके। सचिव (आयुष) की अध्यक्षता वाली स्थायी वित्त समिति (एसएफसी) ने 1 नवंबर, 2017 को इस योजना को मंजूरी दी और बाद में इसे वित्तीय वर्ष 2017-18 के अंत में देश में कार्यान्वयन के लिए शुरू किया गया।
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समन्वयक,
राष्ट्रीय फार्माकोविजिलेंस केंद्र
अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान, सरिता
विहार ,
नई दिल्ली – 110 076ईमेल: pharmacovigilanceayush@gmail.com